लाडाणी शेखावतों के इस गांव में तीन कोटड़ीयां एवं लगभग 150 रावलें है। गंाव के अधिकांश युवा विदेश, आर्मी, एवं विभिन्न निजी क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रहे है। जनश्रुतियों के अनुसार यंहा घोड़ो कि नस्ले सुप्रसिद्व थी जिसके कई किस्से प्रचलित है। गावं के ही श्री सवाईसिंह शेखावत और श्री देवीसिंह शेखावत को द्वितीय विश्वयुद्व में वीरता प्रर्दशन के कारण ब्रिटिश सरकार से मैडल मिले है।
इतिहास
खंडेला के राजा रायसल जो इतिहास में रायसल दरबारी के नाम से जाने जाते है उनके ज्येष्ठ पुत्र लालसिंहजी के पुत्र लाडखानी शेखावत कहलाये।
लालसिंहजी के द्वितीय पुत्र माधवदासजी एवं माधवदासजी के द्वितीय पुत्र उदयसिंहजी को खोरण्डी, हुडील, भीलाल छोटी, भीलाल बड़ी, लालास, गोरियां, भारिजा आदि गांव भाईबंट में मिले।
उदयसिंहजी ने खोरण्डी में गढ कर निर्माण करवाया और वहीं रहने लगे। इनका विवाह रामचंन्द्रसिंह जोधा कि पुत्री दीपकंवर से हुआ था। जब इनका विवाह हुआ तब राणीसा दीपकंवर अपने पीहर से श्री राघवजी कि मुर्ति अपने साथ लेकर पधारें। जब उदयसिंहजी को उनका भक्ति प्रेम मालुम हुआ तो उन्होने खोरण्डी के गढ के अन्दर एक छोटा सा मन्दिर बनवा दिया। उस समय किले व गढ के अन्दर इष्टदेव कि सिवा के भी मन्दिर नही होते थे और जंही भी बने है कोई खास कारणों से ही बने है। जिसका मुख्य कारण ये था कि श्री उदयसिंहजी एवं राणीसा दीपकंवर राघवजी कि पुजा अर्चना व भोग लगाये बिना अन्न जल ग्रहण नही करते थे। उन्होने ये क्रम तब तक निभाया जब तक वे जिवित रहे। उनके इस राघव प्रेम के कारण ही आज उनके वंशज आपसी सबोंधन ‘जय राघव जी की‘ कहकर बंुलाते है।
उदयसिंहजी के छः पुत्र थे जिनके नाम अचलसिंह, कानसिंह, गजसिंह, शार्दुलसिंह, सुखसिंह, अखैसिंह एवं एक पुत्री केशर कंवर जिसका विवाह मारोठ के महाराज रूघनाथसिंह मेड़तिया के साथ हुआ था।
उदयसिंह के पुत्र कानसिंह बड़े वीर और बहादुर थे। कानसिंह ने रूघनाथसिंह मेड़तिया व बगरू के चर्तुभुज राजावतों और लाडाणी शेखावत भाईयों के साथ गोड़ो के प्रमुख ठिकानों मारोठ, पाचोंता, पाचवां, लुणवां, मिठड़ी पर आक्रमण कर उनकी जागीरें छीन ली।
”शेखावतां री ख्यात” के अनुसार सात बीसी गांव तो गोड़ाटी का दाब लिया सो तो जवांई रूघनाथसिंह मेड़तिया ने दे दिया।”
इस कथन से ये सिद्व होता है कि गोड़ो पर विजय में कानसिंह का बहुत बड़ा योगदान था उनके नाम के कारण जीजोट के पास दो गिरीखंडो कि बीच का दर्रा आज भी ‘कानजी का घाटा‘ के नाम से जाना जाता है। उनके सबंध में दोहा प्रचलित है।
कान्हा केशर काठिया गौड़ाटी में गौड़।
उदयसिंह सुत कारणे राज करें राठौड़।।
कानसिंह का देहांत भारीजा में हुआ जहां उनकी स्मृति में शमसानो में चबुतरा बना हुआ है।
कानसिंह के दो ठकुराणीयां थी बड़ी ठकुराणी के दो पुत्र रामसिंह एवं राजसिंह हुये इनके वशंज खोरण्डी में निवास करतें है।